फिरसे तुम एक अजनबी से…एक अजनबी बन गये!

Sonal Sorte
2 min readJan 8, 2024

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ये दास्तान तब की है,
जब हम दोनों अजनबी थे…(x2)

कुछ नजरे मिली..
कुछ परिचय हुए..
पता नहीं केसे इन बातों के चर्चे हुए…

था वो मौसम टिपटिप टिपटिप का…
बाहर बारिश का पानी,
और इनबॉक्स में हमारी कहानी का…

अब कहानी आगे बढि़ तो कुछ इस तरह…
इनबॉक्स से निकल के सीधे दिल की तरफ।
और फिर चले सिलसिले लंबी कॉल पे,
क्यों के आउटगोइंग दोनों के फ्री थी…

जनाब…ये डेट वेट तो सब बस बहाने थे…
असली कारण तो तुम्हारे दर्शन पाने थे🥰

दिल झूम उठता जब तुम, “मेरी राधा” कह के पुकारते…
असल में तुम हमेशा से ही मेरे लिए कृष्ण रहे थे।

तुम मेरी ज़िंदगी की वो हसीन परीकथा हो
जो काश कभी ख़तम ही ना हो।

मैं तो हमारी हर याद को हमेशा संजोकर रखूँगी…
फिर चाहे वो…
देर रात वाली कॉफ़ी डेट हो…
या आधी रात का छुपते छुपाते मिलना।
मेरा तुम्हें अपनी बकबक से जगाए रखना हो…
या तुम्हारा हमेशा सोने का नाटक करते हुए सब सुनना।
मेरा तुम्हारे बाहो में आकर टूट के बिखरना हो…
या तुम्हारा मुझे समेटते हुए हकसे डाँट लगाना।

या हो तुम्हारा बिना वादों के…..मेरी हर बात मानना। 🥰

माना के हम औरो की तरह दिखाते नहीं…
लेकिन तुम मानो या ना मानो,
आज भी बस तुम्हारे ख़यालों में खोते हैं,
अतीत की यादो मैं सोते है,
और तुम्हारी ही दीदार के लिए रोते हैं।

सिवाए हमारे वक्त के,
सब तो जायज़ था…
प्यार भी,
इक़रार भी,
ऐतबार भी,
और तेरा करार भी…।

पता था कि ये कभी तो होगा,
लेकिन पता नहीं था कि ये इतनी जल्दी भी होगा…

काश थोड़ा और समय मिलता साथ बिताने में…
काश ये सच होता किसी और बहानेसे…
लेकिन शायद यहीं तक का था सफर हमारे तक़दीरा में।

इस तरह आज फिर तुम…
एक अजनबी से एक अजनबी तक का सफर पार कर गए हो…

एक अजनबी से फिर… एक अजनबी बन गयेहो!

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Written by Sonal Sorte

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