ना जाने आँखें ये क्यों भर आयी…
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आज आखें ये भर आयी,
न जाने क्यों फिरसे तेरी याद आयी…
सोचा ना था के कभी इस तरह जुदा होंगे,
हर एक पल तुम हम से यु खफा होंगे…
आज भी हर दुआ वो याद आये,
जिसमे सिर्फ तुम्हारी खुशाली चाहे….
ना जाने कितने गीले शिकवे थे,
मगर उनसे भी ज्यादा प्यार की शरारते थे….
हो मौसम की पेहली बारिश,
या फिर हो मौसम सर्दियों का,
तुम्हारे जैकेट की गर्मायी आज भी याद आये…
ना जाने क्यों फिरसे तेरी याद आये…
हर मौसम बड़ा सुहाना था,
जब हम दोनों का अधूरा साथ भी पूरा था….
अचानक से राते लगने लगी हे लम्बी,
पहले तोह हमारी बातें हुआ करती थी लगातार…
सवेरे की पेहली चाय की चुस्की,
और तुम्हारा गुड मॉर्निंग…
दोनों माय गॉड, हमेशा समयनिष्ठ रहे थे..
सोचा था जिन्दगी के भाग दौड़ में भूल जायेंगे हम,
जिम्मेदारियों को निभाते निभाते संभल जायेंग हम,
पर आज भी हर दिन ढलता है तुम्हारे यादो के संग…
ना जाने क्यों आज फिरसे तेरी याद आयी…
और फिर एक बार ये आँखें भर आयी…